Volume : V, Issue : VIII, September - 2015 भूमण्डीकरण के दंश को उकेरती जितेन्द्र श्रीवास्तव की कविताविनोद कुमार , None By : Laxmi Book Publication Abstract : पिछले तीन दशको में विश्व-भर का स्वरूप इतनी तीव्रता से परिवर्तीत हुआ है, जितना उसके पूर्व के कुल सौ वर्षा में भी संभवत: नही हुआ होगा | परिवर्तन की इस सुनामी का एक सबसे बडा और महत्वपूर्ण कारक सूचना-प्रौद्धोगिक के क्षेत्र में आई क्रांती है | Keywords : Article : Cite This Article : विनोद कुमार , None(2015). भूमण्डीकरण के दंश को उकेरती जितेन्द्र श्रीवास्तव की कविता. Indian Streams Research Journal, Vol. V, Issue. VIII, http://isrj.org/UploadedData/7156.pdf References : - श्रीवास्तव, जितेन्द्र, अनभैकथा, प्रथम संस्करण, नई दिल्ली, पृ.११०.
- नारायण बद्री, साहित्य और समय, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ.५६.
- नारायण बद्री, साहित्य और समय, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ.५६.
- http://booksamiksha.blogspot.in/2013/02/blog-post_7636.html
- श्रीवास्तव, जितेन्द्र, अनभैकथा, प्रथम संस्करण, नई दिल्ली, पृ.११०.
- नारायण बद्री, साहित्य और समय, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ.५६.
- श्रीवास्तव, जितेन्द्र, अनभैकथा, प्रथम संस्करण, नई दिल्ली, पृ.११०.
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- श्रीवास्तव, जितेन्द्र, अनभैकथा, प्रथम संस्करण, नई दिल्ली, पृ.९४.
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- नारायण बद्री, साहित्य और समय, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ.५६.
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- नारायण बद्री, साहित्य और समय, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ.५६.
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- श्रीवास्तव, जितेन्द्र, अनभैकथा, प्रथम संस्करण, नई दिल्ली, पृ.९४.
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