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Volume : V, Issue : X, November - 2015

‘‘जनतंत्र(1) और उसकी विकास यात्रा’’

दिनेश कुमार पाण्डेय, None

By : Laxmi Book Publication

Abstract :

‘‘जनतंत्र महज एक शब्द नहीं है, वह सिद्धांत भी है और व्यवहार भी है। इन दोनों के बीच घटित होने वाली अनगिनत अंतःक्रियाओं का वह कभी मूक तो कभी उग्र दर्शक भी रहा है और ऐसे दर्शकों की एक पूरी जमात को नियंत्रित-संचालित करने वाला एक तंत्र भी। उसके कई अर्थ हैं, कई रूप हैं। उनकी अनेकानेक व्याख्या है और उन व्याख्याओं के आधार पर बनी सत्ता की ऐसी अनेक इमारतें हैं, जो हजारों-लाखों के बलिदान की बदौलत खड़ी हुई इनमें से कई ढह गई, कई ढहने के कगार पर हैं और कई ऐसी ऐसी हैं जिन पर खरोचें तो आई लेकिन उनकी बुलंदी बरकरार रही। सिर्फ बीसवीं शताब्दी ही नहीं बल्कि पिछली चार-पांच शताब्दियां इस एक शब्द के इर्दगिर्द घुमती रही। यह शब्द हमेशा अपने नये नायकों की तलाश करता रहा। जो कभी नायक थे उन्हें खलनायक और खलनायकों को नायक बनाने में कभी देरी नहीं की।’’

Keywords :


    Article :


    Cite This Article :

    दिनेश कुमार पाण्डेय, None(2015). ‘‘जनतंत्र(1) और उसकी विकास यात्रा’’. Indian Streams Research Journal, Vol. V, Issue. X, http://isrj.org/UploadedData/7332.pdf

    References :

    1. वही
    2. वही
    3. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    4. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    5. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    6. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    7. वही
    8. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    9. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    10. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    11. वही पृ. 42
    12. वही
    13. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    14. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    15. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    16. वही पृ. 42
    17. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    18. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    19. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    20. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    21. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    22. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    23. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    24. वही
    25. वही
    26. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    27. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    28. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    29. वही पृ. 42
    30. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    31. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    32. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    33. वही पृ. 42
    34. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    35. वही
    36. वही
    37. वही
    38. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    39. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    40. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    41. वही पृ. 42
    42. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    43. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    44. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    45. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    46. वही
    47. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    48. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    49. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    50. वही पृ. 42
    51. वही
    52. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    53. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    54. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    55. वही
    56. वही
    57. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    58. वही
    59. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    60. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    61. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    62. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    63. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    64. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    65. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    66. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    67. वही
    68. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    69. वही
    70. वही
    71. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    72. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    73. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    74. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    75. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    76. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    77. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    78. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    79. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    80. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    81. वही पृ. 42
    82. वही
    83. वही
    84. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    85. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    86. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    87. वही पृ. 42
    88. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    89. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    90. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    91. वही
    92. वही
    93. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    94. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    95. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    96. वही पृ. 42
    97. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    98. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    99. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    100. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    101. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    102. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    103. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    104. वही
    105. वही
    106. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    107. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    108. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    109. वही पृ. 42
    110. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    111. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    112. वही पृ. 42
    113. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    114. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    115. वही
    116. वही
    117. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    118. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    119. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    120. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    121. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    122. वही
    123. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    124. वही
    125. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    126. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    127. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    128. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    129. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    130. वही पृ. 42
    131. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    132. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    133. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    134. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    135. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    136. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    137. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    138. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    139. वही पृ. 42
    140. वही
    141. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    142. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    143. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    144. वही पृ. 42
    145. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    146. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    147. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    148. वही
    149. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    150. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    151. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    152. वही
    153. वही
    154. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    155. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    156. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    157. वही पृ. 42
    158. वही
    159. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    160. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    161. वही
    162. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    163. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    164. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    165. वही
    166. वही
    167. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    168. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    169. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    170. वही पृ. 42
    171. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    172. ये घोषणाएं एल्विन टाँफलर और फ्रांसिस फुकुयामा सरीखे उदारवादी चिंतकों ने की थी। फुकुयामा ने तो ‘‘द इंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’’ नामक एक पुस्तक भी लिख डाली थी जो 1992 में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी ।
    173. आदित्य निगम- ‘‘जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धांतिक सवाल’’ प्रतिमान (समय समाज और संस्कृति) जन.-जून. 2014 पैछ 2320.8201 पृष्ठ 8
    174. डेविड हेल्ड ;1996द्ध दृ माडल्स ऑफ डेमोक्रेसी पाँलिटी प्रेस कैम्ब्रिज पृ. 40-43
    175. वही
    176. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    177. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    178. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    179. वही पृ. 42
    180. वही
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    182. अरूण पाण्डेय - हमारा लोकतंत्र और जानने का अधिकार पैछ 81. 7055. 801.8 पृ.3-4
    183. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    184. इस लेख में डेमोक्रेसी के लिए जनतंत्र शब्द को चुनने की एक वजह यह है कि इसका ताल्लुक जन से है, जो हाल का गढ़ा गया शब्द है। वैसे तो हिन्दी में लोक शब्द का पारम्परिक चलन है, जिससे लोकतंत्र और लोकशाही जैसे शब्द बनते हैं। जनतंत्र की जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था, परन्तु उन्हें न चुनने के पीछे भी एक वजह है, लोक का पारम्परिक चलन होने के कारण वह अंग्रेजी के फोक के ज्यादा नजदीक बैठता है और हमारे पारम्परिक इस्तेमाल में लोक संस्कृति, लोक भाषा आदि का एक खास अर्थ शास्त्रीय फर्क करने के लिए किया जाता है। उस अर्थ में भी उसका अर्थ फोक के बहुत नजदीक है। मगर इसके अलावा भी एक वजह है जो समाज-विज्ञानी नजरिए से अहम है जन और जनता का मौजूदा अर्थ पीपल के लिए रूढ़ हो चुका है। और वह हमें बार-बार याद दिलाता है कि इसकी जड़ें हमारी आधुनिक राजनीति में कितनी नई है। जन और जनता का ताल्लुक उस नए किरदार से है जिसे आधुनिक राजनीति में विल (संकल्प/इरादा) साँवरेंटी (सम्प्रभुता) प्रतिनिधित्व का आधार माना जाता है। हर संविधान और हर दस्तावेज इसी की दुहाई देकर वि द पीपल के नाम पर अपने वजूद को जायज ठहराता है।
    185. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    186. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    187. वही पृ. 42
    188. एस.पी.बनर्जी - ‘‘ जनतंत्र कुछ विचार’’ इतिहास बोध पत्रिका त्छप् 46825.89 पृष्ठ 26-27 द्वारा (प्रस्तुत अंष लेख डी.पी. चट्टोपाध्याय द्वारा संपादित ‘‘एसेज इन सोषल एण्ड पोलिटिकल फिलाँसफी से लिया गया है।)
    189. द न्यू इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, पंद्रहवां संस्करण वाल्यूम 4 पृष्ठ 5
    190. वही पृ. 42

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