Volume : VI, Issue : III, April - 2016 जनमेजय का नागयज्ञ मिथकीय पात्र और प्रासंगिकताकुसुमलता, - By : Laxmi Book Publication Abstract : साहित्यकार युगद्रष्टा और युग-प्रवत्र्तक होता है। वह अपनी रचना के माध्यम से अपनी युगीन परिस्थितियों को उद्घाटित करने का प्रयास करता है। प्रसाद युग में भारत पतनावस्था की चरम सीमा पर पहुंच चुका था। साहित्यकार नव-जागरण का संदेश दे रहे थे। राष्ट्रीय समस्याओं को नाटक, कविता, उपन्यास, निबंध आदि विधाओं के माध्यम से चित्रित किया जा रहा था। भारत की शोचनीय अवस्था को देखकर प्रसाद जी ने एक साहित्यकार होने के नाते अपने दायित्व का पूर्ण निर्वाह किया। Keywords : Article : Cite This Article : कुसुमलता, -(2016). जनमेजय का नागयज्ञ मिथकीय पात्र और प्रासंगिकता. Indian Streams Research Journal, Vol. VI, Issue. III, http://isrj.org/UploadedData/8030.pdf References : - वही, पृ. 17.
- वही, पृ. 18.
- वही, पृ. 15.
- वही, पृ. 86.
- वही, पृ. 17.
- वही, पृ. 18.
- वही, पृ. 17.
- वही, पृ. 18.
- वही, पृ. 15.
- वही, पृ. 86.
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- वही, पृ. 86.
- वही, पृ. 15.
- वही, पृ. 86.
- वही, पृ. 17.
- वही, पृ. 18.
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